बाराबंकी- अनुबंधित बसों के संचालन के बावजूद राजधानी सहित जनपद में ही विभिन्न स्थानों तक आवागमन करने वाले यात्रियों को विभिन्न समस्याओं से दो चार होना पड़ रहा है। जिसमें सबसे बड़ी समस्या जहां समय को लेकर है तो वहीं दूसरी बड़ी समस्या यात्रियों के साथ विभागीय ड्राइवर कण्डकटरों की बदसलूकी भी कहीं न कहीं शामिल है।
बता दें कि बसों के संचालन का कोई टाइम टेबल नहीं रह गया है। कभी एक साथ 4-5 बसे एक दूसरे के आगे पीछे लगातार लाइन बना निकलतीं हैं तो दूसरी तरफ कभी घंटों अमूमन रूटों यहां तक की राजधानी लखनऊ के लिए भी बसों का टोटा लोगों को ऑटो से यात्रा को मजबूर कर देती हैं जिनसे वसूली के चक्कर में जिम्मेदार पुलिस प्रशासन यात्रियों को रासिते में ही उतार किसी के लिए चिकित्सक से मिलने, किसी बच्चे-बच्चियों का स्कूल मिस हो जाता है तो किसी का अन्य कोई जरूरी कार्य प्रभावित हो जाता है लेकिन इससे सरकारी दमाद बने मोटी तनखाह लील रहे जिम्मेदारों की मोटी चमड़ी पर कोई असर नहीं पड़ता। तो वहीं अमूमन कण्डेक्टर बकाया पैसा तुरंत ना देकर पीछे लिख देते हैं और यात्रा गन्तव्य पर समाप्त होने पर लौटाना भूल जाते हैं। जिससे बेचारे यात्री के पास सिवाए कोसने के कोई विकल्प शेष नहीं बचता, और वो करे भी तो क्या? सरकारी दामादों से लड़ना आम लोगों के लिए बदतर होते जा रहे कलयुगी राज्य में आसान भी नहीं है।
वहीं लखनऊ पढ़ने जाने वाले तमाम छात्र-छात्राओं की परेशानी तो मौजूदा राम राज्य में इतनी बढ़ गई है कि उन्हें अपने विद्यालय, इन्स्टीट्यूट तक आनेजाने में कई बार आटो-मैट्रों बदलकर यात्रा को मजबूर होना पड़ता है क्योंकि कलयुगी रामराज्य में देवॉ से तो सिटी बसों का संचालन है लेकिन जिला मुख्यालय व महादेवा से लखनऊ आवागमन अब आसान नहीं है अगर आपको मेडिकल कॉल्ज, अलीगंज, अमीनाबाद सहित जरूरत वाले स्थानों पर जाना हो। उपर से बस स्टैंड से निकली अनुबंधित बस को खाली होने पर भी आवास विकास मोड़, एआरटीओ कार्यालय मोड़ पर ड्राइवर व सहचालक छात्राओं व महिलाओं तक के हाथ देने पर नहीं रोकते जिसको लेकर मौजूदा एआरएम सुधा वर्मा तक से शिकायत के साथ-साथ परिवहन मंत्री तक से शिकायत के साथ-साथ कई बार समाचार ङी दैनिक समाचार पत्रों में समाचार का प्रकाशन भी हो चुका है लेकिन मजाल है कि जनहित पर नौकरशाहों से लेकर जनप्रतिनिधियों का ध्यान भी गया हो या कोई प्रतिक्रिया तक सामने आयी हो।