अमेठी – मित्र हमारे सुख-दुख के साथी होते हैं। किसी भी परिस्थिति में मित्र हमेशा साथ खड़े होते हैं। भारतीय परंपरा में मित्रता की बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कृष्ण और सुदामा की कहानी है। भारतीय परंपरा में मित्र का जीवन में बहुत बड़ा स्थान है। जीवन में माता-पिता और गुरु के बाद मित्र को विशेष स्थान दिया गया है। ये बातें गौरीगंज शहर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन मंगलवार को प्रवाचक सुभाष शांडिल्य महाराज ने कहीं।प्रवाचक ने कहा कि जब कभी मित्रता की बात होती है तो कृष्ण और सुदामा की मिसाल दी जाती है। श्रीकृष्ण बालपन में ऋषि संदीपन के यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उनकी मित्रता सुदामा से हुई थी। कृष्ण राज परिवार में और सुदामा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन दोनों की मित्रता का गुणगान पूरी दुनिया करती है। शिक्षा-दीक्षा समाप्त होने के बाद भगवान कृष्ण राजा बन गए, वहीं दूसरी तरफ सुदामा के बुरे दौर की शुरुआत हो चुकी थी। बुरे दिनों से परेशान होकर सुदामा की पत्नी ने उन्हें राजा कृष्ण से मिलने जाने के लिए कहा। पत्नी की जिद को मानकर सुदामा अपने बाल सखा कृष्ण से मिलने द्वारिका गए। राजा कृष्ण अपने मित्र सुदामा के आने का संदेश पाकर नंगे पैर ही उन्हें लेने के लिए दौड़ पड़ते हैं। मित्र सुदामा की दयनीय हालत देखकर भगवान कृष्ण के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भगवान कृष्ण ने मित्र सुदामा के पैर अपने आंसुओं से धो दिए। यह घटना भगवान कृष्ण का अपने मित्र सुदामा के प्रति अनन्य प्रेम को दर्शाती है। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।