Conservative Hybrid Funds: Definition, Features and Benefits: कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड एक ऐसा इनवेस्टमेंट ऑप्शन है जो कम रिस्क में भी महंगाई को मात देने वाले रिटर्न दे सकता है. यह फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं, जो बैंक एफडी की तुलना में ज्यादा रिटर्न हासिल करना चाहते हैं. लेकिन साथ ही प्योर इक्विटी फंड में निवेश से जुड़ा हाई रिस्क नहीं उठाना चाहते. कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड ऐसे निवेशकों को स्टेबल रिटर्न देने का काम करते हैं.
क्या है कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड ?
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड ऐसे हाइब्रिड म्यूचुअल फंड हैं, जो निवेशकों के पैसों को डेट और इक्विटी दोनों में बांटकर निवेश करते हैं. लेकिन इसमें डेट की हिस्सेदारी अधिक रहती है.
सेबी की परिभाषा के मुताबिक कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड का 75% से 90% तक निवेश सरकारी बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड, ट्रेजरी बिल जैसे डेट इंस्ट्रूमेंट्स में होना चाहिए, जबकि 10% से 25% तक निवेश इक्विटी और इक्विटी डेरिवेटिव्स में किया जाता है. ये फंड मुख्य रूप से पूंजी की सुरक्षा और कम वोलैटिलिटी पर फोकस करते हैं. टैक्सेशन के लिहाज से इन्हें डेट फंड की कैटेगरी में ही रखा जाता है.
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड के फायदे–
1. पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन —
– यह फंड इक्विटी और डेट के संयोजन के कारण निवेशकों के पोर्टफोलियो को बेहतर डाइवर्सिफिकेशन देता है.
– इसमें शामिल इक्विटी निवेश के कारण, यह प्योर डेट फंड की तुलना में अधिक रिटर्न दे सकता है.
2. कम रिस्क —
– डेट इंस्ट्रूमेंट्स का अनुपात ज्यादा होने के कारण, इनमें रिस्क प्योर इक्विटी म्यूचुअल फंड्स, एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स या बैलेंस्ड हाइब्रिड फंड की तुलना में कम रहता है. यही वजह है कि इसे रिस्क से बचने वाले निवेशकों के लिए बेहतर माना जाता है.
3. फिक्स्ड रिटर्न इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले ज्यादा इनकम —
– फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) और रिकरिंग डिपॉजिट (RD) जैसे विकल्पों की तुलना में कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड मीडियम से लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं.
– इक्विटी में 25% तक निवेश के कारण ये फंड लंबे समय में महंगाई को मात देने वाला रिटर्न दे सकते हैं.
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड में निवेश के नुकसान–
ऊपर बताए गए फायदों के अलावा कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड में निवेश के साथ कुछ निगेटिव फैक्टर्स भी जुड़े हुए हैं. पूंजी की सुरक्षा और स्टेबल रिटर्न पर ज्यादा जोर देने और डेट इंस्ट्रूमेंट्स की हिस्सेदारी अधिक होने के कारण इनमें निवेश पर मिलने वाला रिटर्न दूसरे इक्विटी-आधारित फंड्स की तुलना में कम हो सकता है. इसके अलावा इन फंड्स का रिटर्न पूरी तरह से फंड मैनेजर की विशेषज्ञता पर निर्भर करता है. निवेश में थोड़ा भी चूक होने पर रिटर्न पर निगेटिव असर पड़ सकता है. इसके अलावा यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि भले ही इन फंड्स में जोखिम कम हो, लेकिन जोखिम पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाते. डिफॉल्ट का रिस्क, इन्फ्लेशन का रिस्क और कुछ हद तक इंटरेस्ट रेट भी रिस्क बने रहते हैं. ज्यादातर कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड्स को रिस्कोमीटर पर मॉडरेटली हाई (Moderately High) रिस्क कैटेगरी में रखा जाता है. इन फंड्स में निवेश का एक बड़ा नुकसान यह भी है कि इनमें किए गए निवेश को टैक्सेशन के नियमों के तहत डेट फंड में रखा गया है. नए नियमों के तहत डेट फंड को कितने भी समय तक होल्ड किया जाए, उनके रिटर्न को टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाता है. यानी इस पर किसी तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं मिलता है.
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड किनके लिए है सही ?–
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हैं, जो रिटायरमेंट के करीब हैं या रिटायरमेंट के लिए स्टेबल रिटर्न देने वाले विकल्पों के तलाश कर रहे हैं. ऐसे निवेशक जो इक्विटी फंड्स की वोलैटिलिटी से बचना चाहते है, लेकिन महंगाई को मात देने वाले रिटर्न हासिल करना चाहते हैं. इसके अलावा जो निवेशक अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करना चाहते हैं, उनके लिए भी यह एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं. निवेश का फैसला करने से पहले निवेशकों को अपने लक्ष्य और रिस्क लेने की क्षमता का आकलन जरूर करना चाहिए.