144 साल बाद मनाए जा रहे इस अमृत महोत्सव को लेकर कई विद्वानों और पंडितों से बातचीत हुई। कई महानुभावों का कहना है कि इस आयोजन का शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं है। परंपरागत रूप से अर्धकुंभ हर 6 साल और महाकुंभ हर 12 साल बाद आयोजित होता है। जहां तक अमृत वर्ष और अमृत स्नान” की बात है, कुछ लोगों का मानना है कि यह केवल एक गणितीय गणना है, जिसमें 12 को 12 से गुणा कर 144 वर्ष का आंकड़ा निकाला गया और इसे “अमृत स्नान” का नाम दे दिया गया। इस पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि इस शुभ मुहूर्त में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि चारों प्रमुख स्नानों में से किस समय को “अमृत स्नान” कहा जा रहा है। पूरे कुंभ में सबसे सटीक और महत्वपूर्ण स्नान का समय क्या है, इस पर भी स्पष्टता नहीं है। हालांकि, स्नान करना कोई अपराध नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अपनी सुविधा और व्यवस्था के अनुसार सकुशल स्नान कर लेता है, तो यह भी उसके लिए सौभाग्य की बात है। लेकिन यहां आस्था और व्यवस्था के बीच कुप्रबंधन भारी पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि जिन अधिकारियों को व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी दी गई, उन्हें इस आयोजन की जमीनी हकीकत का तनिक भी अनुभव नहीं था। फिलहाल, कुछ व्यवस्थाएं आकस्मिक रूप से की जा रही हैं, जिससे लोगों को और अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।