पलवल – की शिव विहार कॉलोनी में स्थित ब्राइट किंगडम (बी.के.) स्कूल के सभागार मे शिवहर शिक्षा संस्कृति न्यास एवं हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के संयुक्त तत्वावधान मे आज होली के पावन पर्व पर भव्य राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर के० डी० शर्मा ने की। मंच संचालन आशु कवि श्री कुबेरदत्त गौतम ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि डा० हरीश कुमार वशिष्ठ, पलवल जिला उपायुक्त ने माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पार्चन और दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुभारंभ किया। स्कूल के चेयरमैन श्री सतीश कौशिष तथा आयोजन समिति के सदस्यों डा० एन. के. गोयल, महेंद्र प्रसाद सिंगला, प्रदीप कुमार, सतपाल सिंह, मोहित सैनी, प्रथम देव और जीतेश कोशिष ने मुख्य अथिति और अन्य अथितियों को फूलमाला, शाल एवं स्मृति चिह्न भेंट कर सभी का भव्य स्वागत व सम्मान किया। वही समारोह में कवि सम्मेलन मे विश्वस्तरीय गीतकार श्यामसुंदर शर्मा ‘अकिंचन’, हास्य पुरोधा पद्म अलबेला, गीतकार सुनीता रैना कश्मीरी, ब्रज भाषा के उभरते गीतकार गोविंद भारद्वाज, ओजकवि वीरपाल परशु, समकालीन रचनाकार चंद्रप्रताप सैनी और लोककवि डा० चंद्रसैन शर्मा ने मुख्य रूप से काव्य पाठ किया। कवि कुबेरदत्त गौतम ने स्वर संगीत अधिक्षठात्री माँ सरस्वती की वंदना प्रस्तुत करते हुए अपने भवोद्गारो मे कहा- माँ शारदे हमारी रक्षा करें और हमें कृपा का वरदान दें। हम भक्तजन आपकी शरण में आते हैं, माता हमें उत्तम संस्कार दीजिए || वीरपाल परशु ने अपनी ओजस्वी वाणी मे माँ की महिमा का गान करते हुए कहा न जाने माँ की ममता में बात क्या खास होती है। अलग अहसास होता है कि माँ जब पास होती है।। मथुरा से पधारे अन्तर्राष्ट्रीय गीतकार श्यामसुंदर ‘अकिंचन’, ने श्रृंगार रस मे काव्य पाठ करते हुए भाव व्यक्त किया चोट दर चोट सहता है, ये घायल का मुकद्दर है। लिपट कर पाँव से बजती ये पायल का मुकद्दर है। उपायुक्त डा. हरीश कुमार वशिष्ठ ने समारोह को संबोधित करते हुए सभी को रंगो के त्यौहार होली व दुल्हेंडी की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि रंगों के इस पावन पर्व होली को आपसी भाईचारा का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने कहा कि वे बृज की होली से वे बहुत प्रभावित हैं। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा बृजवासी होली के त्यौहार को कई दिनों तक मनाते हैं। इसी कारण से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। होली केवल रंगों का खेल नहीं, बल्कि सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का भी पर्व है। इस दिन लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाते हुए रंग-गुलाल लगाकर खुशी मनाते हैं।
रिपोर्ट – संतोष शर्मा