मुसाफिरखाना अमेठी- आत्मा और परमात्मा का संबंध शाश्वत और अटूट है। आत्मा, जो परमात्मा का अंश है, सदैव उनसे जुड़ने की आकांक्षा रखती है। यह नाता प्रेम पर आधारित है और इसका आधार भक्ति और समर्पण है। ये बातें नेवादा स्थित महात्मा बलदेव दास मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन प्रवाचक आचार्य शिवकुमार शास्त्री ने कहीं। प्रवाचक ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता और भागवत पुराण में आत्मा व परमात्मा के प्रेमपूर्ण संबंध को स्पष्ट किया है। गोपियों और श्रीकृष्ण के प्रेम का उदाहरण इसका सजीव रूप है। गोपियों ने अपनी आत्मा को श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया और इस समर्पण के कारण वे भगवान के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गईं। यह प्रेम सांसारिक मोह-माया से परे है और आत्मा के उच्चतम आनंद का माध्यम है। प्रवाचक ने कहा कि भागवत कथा यह सिखाती है कि आत्मा का परम उद्देश्य अपने श्रोत, अर्थात परमात्मा से जुड़ना है। यह जुड़ाव तब संभव है जब व्यक्ति अपने अहंकार, आसक्ति और भौतिक इच्छाओं को त्याग कर प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलता है। जैसे गजेंद्र ने संकट के समय भगवान को पुकारा और उनके प्रति पूर्ण समर्पण दिखाया, वैसे ही जब आत्मा भगवान को अपना संपूर्ण मानकर उनके प्रति प्रेम और भक्ति करती है, तब परमात्मा स्वयं उसे अपनी गोद में ले लेते हैं। भक्ति, प्रेम और समर्पण से आत्मा और परमात्मा का संबंध सुदृढ़ और आनंदमय हो सकता है। यह नाता हमें मोक्ष की ओर ले जाता है और जीवन में परम शांति और आनंद का अनुभव कराता है। इस अवसर पर राजकुमार सिंह, संतोष सिंह, घनश्याम पांडेय, इंद्रजीत आदि उपस्थित रहे।