
संप्रग काल में आई पहली बार अवधारणा–
लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती की जाती है। यह अवधारणा सबसे पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान पेश की गई थी। 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका समर्थन किया था।
एआरसी को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिक-अनुकूल बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था।
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के 45 सरकारी पदों को लेटरल एंट्री के जरिए भरने के फैसले पर सोमवार को एनडीए में भारी मतभेद उभर आए। जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने इस कदम का विरोध किया, जबकि तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने समर्थन करते हुए कहा कि नौकरशाही में लैटरल एंट्री से आम लोगों को बेहतर सेवा मिल सकेगी।” भाजपा यह कह इसका बचाव कर रही है कि इस नीति को कांग्रेस ने 2005 में तैयार किया था। लेकिन भाजपा इस सवाल का जवाब नहीं दे रही है कि कांग्रेस ने इसे कभी लागू नहीं किया और मोदी सरकार ने इसे 2018 में लागू कर रखा है। 57 अधिकारी लैटरल एंट्री के जरिए रखे भी जा चुके हैं। जिनसे आरक्षण का हक और आईएएस का हक मारा गया है।

एआरसी के तर्क–
- कुछ सरकारी भूमिकाओं के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है जो पारंपरिक सिविल सेवाओं के भीतर हमेशा उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए विषय विशेषज्ञों को शामिल करना जरूरी है।
- इससे विशेषज्ञों का एक पूल तैयार होगा। ये विषय विशेषज्ञ अर्थशास्त्र, वित्त, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक नीति जैसे क्षेत्रों में नए दृष्टिकोण और विशेषज्ञता लाएंगे।
- लेटरल एंट्री को मौजूदा सिविल सेवाओं में इस तरह से एकीकृत किया जाए कि सिविल सेवा की अखंडता और लोकाचार को बनाए रखते हुए उनके विशेषज्ञ कौशल का लाभ उठाया जा सके।
मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली प्रशासनिक सुधार आयोग ने तैयार किया था आधार–
1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका आधार तैयार किया था। हालांकि आयोग ने लेटरल एंट्री की कोई वकालत नहीं की थी। बाद में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री के जरिये भरा जाने लगा। नियमों के अनुसार, इसके लिए 45 वर्ष से कम आयु होनी चाहिए और वह अनिवार्य रूप से एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हो। इसी तर्ज पर कई अन्य विशेषज्ञों को सरकार के सचिवों के रूप में नियुक्त किया जाता है।
मोदी सरकार के दौरान लेटरल एंट्री की औपचारिक शुरुआत–
लेटरल एंट्री योजना औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में शुरू हुई। 2018 में सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। यह पहली बार था कि निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को इसमें मौका दिया गया।
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि “हम एक ऐसी पार्टी हैं जो शुरू से ही सरकारों से कोटा भरने के लिए कहती रही है। हम राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं। जब लोग सदियों से सामाजिक रूप से वंचित रहे हैं, तो आप योग्यता की तलाश क्यों कर रहे हैं? सरकार का यह आदेश हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है।”
केसी त्यागी ने कहा कि ऐसा करके सरकार विपक्ष को एक मुद्दा तश्तरी में परोस रही है। उन्होंने कहा कि “एनडीए का विरोध करने वाले लोग इस विज्ञापन का दुरुपयोग करेंगे। राहुल गांधी सामाजिक रूप से वंचितों के चैंपियन बनेंगे। हमें विपक्ष के हाथों में हथियार नहीं देना चाहिए।’
एलजेपी (रामविलास) अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी शनिवार को प्रकाशित यूपीएससी विज्ञापन को लेकर नाखुशी जाहिर की। चिराग ने कहा- “किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है। निजी क्षेत्र में कोई आरक्षण मौजूद नहीं है और अगर इसे सरकारी पदों पर भी लागू नहीं किया गया तो गलत होगा।… यह जानकारी रविवार को मेरे सामने आई और यह मेरे लिए चिंता का विषय है।’
- पासवान ने कहा कि सरकार के सदस्य के रूप में उनके पास इस मुद्दे को उठाने के लिए मंच है और वह उठाएंगे। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि जहां तक उनकी पार्टी का सवाल है, वह इस तरह के कदम के “बिल्कुल समर्थन में नहीं”
एलजेपी (रामविलास पासवान) के प्रवक्ता एके वाजपेयी ने कहा, ”हम बिना आरक्षण के लेटरल एंट्री के विरोध में हैं। यह संवैधानिक आदेश के ख़िलाफ़ है। चूंकि हम एनडीए का हिस्सा हैं, इसलिए हम सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हैं। हम इस मामले में उचित समय पर उचित कदम उठाएंगे।”
आंध्र प्रदेश के मंत्री और टीडीपी के राष्ट्रीय महासचिव नारा लोकेश ने बताया, “इनमें से कई (सरकारी) विभागों को विशेषज्ञता की आवश्यकता है और हमें खुशी है कि इसे (लैटरल एंट्री) लाया जा रहा है। हम हमेशा विशेषज्ञों की सेवाएं लेने के पक्ष में रहे हैं। सरकार को निजी क्षेत्र से सीखना चाहिए। हम केंद्र सरकार के इस कदम का समर्थन करते हैं क्योंकि इससे शासन की गुणवत्ता और आम नागरिक तक सेवाओं की डिलीवरी में वृद्धि होगी।’

समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यूपीएससी के तहत शीर्ष पदों पर अपने वैचारिक मित्रों को नियुक्त करने की भाजपा की साजिश के खिलाफ अब राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करने का समय आ गया है। अखिलेश ने कहा- “वास्तव में, पूरी योजना ‘पीडीए (पिछड़ा, दलित, आदिवासी)’ के आरक्षण और अधिकारों को छीनने की है। अब जब भाजपा को एहसास हो गया है कि पीडीए संविधान को बदलने की उनकी योजना के खिलाफ खड़ी हो गई है, तो वे लैटरल एंट्री की अनुमति देकर गुप्त रूप से आरक्षण को खत्म करना चाहते हैं।”
बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने दबी जबान से इसका विरोध किया है। मायावती ने कहा कि सरकार का कदम “सही नहीं” है। रविवार को उन्होंने कहा था कि इससे निचले स्तर के कर्मचारी पदोन्नति के अवसरों से वंचित हो जाएंगे। मायवती ने सरकार पर “संविधान का उल्लंघन” करने का आरोप लगाया। लेकिन बसपा ने मोदी सरकार के इस कदम के विरोध में किसी तरह का आंदोलन छेड़ने की बात नहीं कही।
सत्तारूढ़ गठबंधन में अलग-अलग आवाजें तभी उभरीं जब लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) राहुल गांधी ने सोमवार और मंगलवार को लगातार इस कदम की आलोचना की। राहुल ने मोदी सरकार के कदम को “दलितों, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला” बताया। गांधी ने कहा, ”भाजपा का राम राज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करना और बहुजनों से आरक्षण छीनना चाहता है।”

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी लगातार दो दिन लैटरल एंट्री के बारे में एक्स पर ट्वीट किया। खड़गे ने कहा कि “मोदी सरकार का लेटरल एंट्री प्रावधान संविधान पर हमला क्यों है”। खड़गे ने कहा कि ‘बीजेपी ने सरकारी विभागों में नौकरियां भरने के बजाय अकेले पीएसयू में भारत सरकार की हिस्सेदारी बेचकर पिछले 10 वर्षों में 5.1 लाख पदों को खत्म कर दिया है। आकस्मिक और कॉन्ट्रैक्ट भर्ती में 91% की वृद्धि हुई है। 2022-23 तक एससी, एसटी, ओबीसी पदों में 1.3 लाख की कमी की गई है।”