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न्यायालय धारा 125 CrPc या धारा 144 BNSS के तहत एकपक्षीय अंतरिम भरण-पोषण दे सकता है, जब पुष्ट तथ्य दिखाए जाएं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायालय धारा 125 CrPc या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 144 के तहत एकपक्षीय अंतरिम भरण-पोषण दे सकता है।

जस्टिस सुमीत गोयल ने स्पष्ट किया, “न्यायालय को न्यायिक विवेक और न्याय के सुस्थापित मानदंडों के अनुसार एकपक्षीय अंतरिम भरण-पोषण/अंतरिम भरण-पोषण देने की याचिका पर विचार करना चाहिए। इस तरह की शक्ति के प्रयोग के लिए कोई सार्वभौमिक संपूर्ण दिशा-निर्देश निर्धारित नहीं किए जा सकते। न्यायालय द्वारा किसी दिए गए मामले के तथ्यों/परिस्थितियों के आधार पर इसका प्रयोग किया जाएगा।”

आगे कहा गया कि न्यायालय को असाधारण मामलों में एकपक्षीय अंतरिम भरण-पोषण/अंतरिम भरण-पोषण प्रदान करना चाहिए, जहां महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखे गए हों। ये टिप्पणियां व्यक्ति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते समय की गईं, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई। उक्त आदेश में न्यायालय ने पति को भरण-पोषण याचिका के अंतिम निपटान तक अपनी पत्नी को 15,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यह आदेश कानून के विरुद्ध है, क्योंकि अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन के अंतिम निपटान तक CrPc की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण-पोषण/अनंतिम भरण-पोषण देने के लिए कोई विधायी आदेश नहीं है।

प्रस्तुतिया सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,“विचार के लिए उठने वाला मुख्य कानूनी मुद्दा यह है कि क्या न्यायालय के पास CrPC, 1973 की धारा 125/BNSS, 2023 की धारा 144 के तहत अंतरिम/अनंतिम भरण-पोषण देने का अधिकार है।”

न्यायालय ने आगे कहा,

“पति/पिता को अपनी पत्नी/बच्चों को उनका हक देने के अपने दायित्व में लापरवाही बरतने की अनुमति नहीं दी जा सकती। खासकर अगर इससे पत्नी/बच्चों को गरीबी और कठिनाई का सामना करना पड़ता है तो इसे अन्य सभी विचारों से परे दूर किया जाना चाहिए।”

जस्टिस गोयल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इसी उद्देश्य से CrPc की धारा 125 और BNSS की धारा 144 को अधिनियमित किया गया। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान सामाजिक न्याय का उपाय है और इसे विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है।

न्यायाधीश ने यह भी कहा कि 2001 के संशोधन से पहले धारा 125 CrPc में अंतरिम भरण-पोषण के अनुदान के लिए कोई वैधानिक आदेश नहीं था।

जस्टिस गोयल ने आगे बताया कि कानून अंतरिम भरण-पोषण के अनुदान का प्रावधान करता है, लेकिन अंतरिम भरण-पोषण के अनुदान के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। साथ ही कानून अंतरिम भरण-पोषण के अनुदान पर भी रोक नहीं लगाता है।

आसान भाषा में न्यायाधीश ने कहा, “एकतरफा अंतरिम भरण-पोषण/अंतरिम भरण-पोषण असाधारण मामलों में प्रदान किया जाना चाहिए, जहां महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखे गए हों।”

वर्तमान मामले में न्यायालय ने कहा कि ऐसी कोई बाध्यकारी या महत्वपूर्ण परिस्थितियां नहीं थीं, जो अंतरिम भरण-पोषण का आदेश पारित करने को उचित ठहरा सकती हों।

परिणामस्वरूप न्यायालय ने याचिकाकर्ता की पत्नी को 15,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश रद्द कर दिया।

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