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HomeLaw/ कानून चेक बाउंस होने पर कब होती है सजा..?

 चेक बाउंस होने पर कब होती है सजा..?

चेक के जरिए पैसों का आदान-प्रदान आज भी कायम है। लोग बड़ी पेमेंट के लिए ज्यादातर चेक का ही इस्तेमाल करते है। कई बार किसी न किसी कारण आपका चेक बाउंस हो जाता है। लेकिन इसके नियमों से अंजान लोग कई बार चेक बाउंस होने के कारण बड़ी मुसीबत में आ सकते है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि अधिकतर लोगों को इससे जुड़े नियमों के बारे में जानकारी ही नही होती है।

चेक के जरिए भुगतान करना आज नही शुरू से ही चलता आ रहा है। आपने भी कभी न कभी तो चेक के जरिए पैसों का लेन देन तो किया ही होगा। तो क्या आप चेक बाउंस (cheque bounce) जैसी टर्म से वाकिफ है या नही?

अगर आप नही जानते कि चेक बाउंस (reasons of cheque bounce) आखिर होता क्या है तो आपको बता दें कि चेक बाउंस का मतलब है कि आपने किसी व्यक्ति को 10,000 रुपये का चेक साइन करके दिया। वह व्यक्ति अपने बैंक में गया और वह रकम अपने खाते में डलवाने के लिए चेक लगा दिया। लेकिन इस चेक में बैंक ने पाया कि जिस व्यक्ति ने (आपने) चेक दिया है, उसके खाते में 10,000 रुपये हैं ही नहीं। तो अब ऐसे में जिसे पैसा मिलना चाहिए था, उसे नहीं मिला और बैंक को अलग से मैनपावर लगानी पड़ी वो अलग। तो ऐसे में इस तरह के चेक रिजेक्ट हो जाने को ही चेक बाउंस होना कहा जाता है।

सलिए ध्यान रखें, जब भी चेक काटें तो अपने बैंक अकाउंट में मौजूदा रकम से कम काटें। अगर आपका चेक बाउंस हुआ तो उसके लिए कानून में कड़ी सजा का प्रावधान है, क्योंकि भारत में चेक बाउंस होने को वित्तीय अपराध (cheque bounce is a Financial Crime) माना गया है। चेक बाउंस का केस परिवादी के परिवाद पर निगोशिएबल इंट्रूमेंट एक्ट (Negotiable Instruments Act), 1881 की धारा 138 के अंतर्गत दर्ज करवाया जाता


चेक बाउंस का केस किस धारा के तहत चलता है?

चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 के तहत अधिकतम 2 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है। लेकिन, सामान्यतः अदालत 6 महीने या फिर 1 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाती है। इसके साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा (Section of Criminal Procedure Code) 357 के अंतर्गत परिवादी को प्रतिकर दिए जाने निर्देश भी दिया जाता है। प्रतिकर की यह रकम चेक राशि की दोगुनी हो सकती है।

चेक बाउंस पर हो गई सजा तो यहां करें अपील–

चेक बाउंस होना एक अपराध (cheque bounce) है और ये अपराध 7 वर्ष से कम की सज़ा का अपराध है इसलिए इसे जमानती अपराध बनाया गया है। इसके अंतर्गत चलने वाले केस में अंतिम फैसले तक अभियुक्त को जेल नहीं होती है। इस मामले में अभियुक्त के पास अधिकार (the accused has rights) होते हैं कि वह आखिरी निर्णय तक जेल जाने से बच सकता है। चेक बाउंस केस में अभियुक्त सजा को निलंबित किए जाने के लिए गुहार लगा सकता है। इसके लिए वह ट्रायल कोर्ट के सामने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के अंतर्गत आवेदन पेश कर सकता है।

अब जैसा कि आप जानते ही है कि किसी भी जमानती अपराध (bailable offense) में अभियुक्त के पास बेल लेने का अधिकार होता है इसलिए चेक बाउंस के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सज़ा को निलंबित कर दिया जाता है। वहीं, दोषी पाए जाने पर भी अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के तहत सेशन कोर्ट के सामने 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।

आप चेक बाउंस से संबंधित नियमों और कानूनों के बारे में नही जानते है तो चेक बाउंस (cheque bounce rules) केस में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 139 में 2019 में अंतरिम प्रतिकर जैसे प्रावधान जोड़े गए। अब इसमें होता ये है कि अभियुक्त को पहली बार अदालत के सामने उपस्थित होने पर परिवादी को चेक राशि की 20 प्रतिशत रकम दिए जाने के प्रावधान है।

हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision on cheque bounce) ने इसे बदल कर अपील के समय अंतरिम प्रतिकर दिलवाए जाने के प्रावधान के रूप में कर दिया है। अगर अभियुक्त की अपील स्वीकार हो जाती है तब अभियुक्त को यह राशि वापस दिलवाई जाती है। इस तरह से चक बाउंस के केस का निवारण किया जाता है।

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