अंतरिम भरण-पोषण आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही मां कामकाजी हो और पर्याप्त कमाई कर रही हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पिता अपने बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुक्त है।
हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पिता अपनी जीवनशैली और स्थिति के अनुसार अपने बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है।
जस्टिस सुमीत गोयल की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा,—
“धारा 125 CrPC सामाजिक न्याय का एक साधन है जो यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया कि महिलाओं और बच्चों को संभावित आवारागर्दी और अभावग्रस्त जीवन से बचाया जाए। यदि पति/पिता के पास पर्याप्त साधन हैं तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है, और नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता।”

कोर्ट ने कहा “जिन घरों में महिलाए काम कर रही हैं और खुद का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त कमाई कर रही हैं, इसका यह मतलब नहीं है कि पति/पिता अपने बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुक्त हो गए हैं। पिता का भी अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए समान कर्तव्य है और ऐसी स्थिति नहीं हो सकती, जिसमें केवल मां को ही बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा के खर्च का बोझ उठाना पड़े।”
यह टिप्पणी तब की गई जब हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति को अपनी नाबालिग बेटी को 7,000 रुपये प्रति माह की दर से अंतरिम भरण-पोषण देने और 10,000 रुपये के मुकदमेबाज़ी खर्च के साथ देने का निर्देश दिया गया था। व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता के पिता की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि वह एक निजी नौकरी में कार्यरत है। उसकी मासिक आय 22,000 रुपये है। उसके परिवार के छह सदस्य उस पर निर्भर हैं, जबकि उसकी पत्नी एक सरकारी टीचर है, जिसकी मासिक आय 35,400 रुपये है।