हॉलीवुड के सितारे अपने समय के सवालों पर राय रखने में पीछे नहीं रहते लेकिन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर चल रहे विवाद पर हिंदी फ़िल्मों के किसी सितारे ने कोई राय नहीं दी। जबकि अचानक सीज़फ़ायर क लेकर हर तरफ़ सवाल उठ रहे है। यही नहीं पाकिस्तानी कलाकारों के बैन के पक्ष या विपक्ष में भी ये चुप्पी नहीं टूटी।
इस बीच पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख़्तर ने ये कहकर विवाद बढ़ा दिया है कि फ़िल्मी सितारे ED, CBI, और इनकम टैक्स की रेड से डरते हैं।
जावेद अख्तर ने एक वेबसाइट को दिये जा रहे इंटरव्यू के दौरान कहा: “जो लोग बॉलीवुड से सवाल पूछते हैं कि वे सरकार या ऑपरेशन सिंदूर पर क्यों नहीं बोलते, उनसे मैं पूछता हूँ—आपने सरकार की कितनी नीतियों पर अपनी आपत्ति दर्ज की है?”

यही नहीं, कुछ दिन पहले उन्होंने कपिल सिब्बल के यूट्यूब चैनल पर हॉलीवुड स्टार मेरिल स्ट्रिप से जुड़े सवाल पर कहा, “मेरिल स्ट्रिप ने ऑस्कर में ट्रंप की आलोचना की, लेकिन उनके घर पर इनकम टैक्स की रेड नहीं पड़ी।
भारत में सितारों को डर है कि ED, CBI, या इनकम टैक्स की फाइलें खुल जाएंगी।” जावेद अख्तर ने यह भी कहा कि फिल्म इंडस्ट्री “मिडिल-क्लास इंडस्ट्रियलिस्ट की जेब में है।”

मेरिल स्ट्रिप, जिन्हें “हॉलीवुड की रानी” कहा जाता है, एक अमेरिकी अभिनेत्री हैं। उन्हें 21 ऑस्कर नामांकन और 3 जीत (1979, 1982, 2011) मिली हैं। उनकी फिल्में—The Deer Hunter, Kramer vs. Kramer, Sophie’s Choice, और The Iron Lady—ने उन्हें वैश्विक पहचान दिलाई। वह सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बेबाकी से बोलती हैं।
सवाल है कि भारत में ऐसा साहस क्यों नहीं? —

शाहरुख खान ने कुछ साल पहले एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा, “हमारे जैसे लोगों के लिए, जो सार्वजनिक जीवन में हैं, हमारे शब्दों को अक्सर संदर्भ से बाहर निकालकर पेश किया जाता है। इसलिए, हम सोच-समझकर बोलते हैं। जब कोई सितारा कुछ कहता है, तो बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ नाटक शुरू हो जाता है। हम अपने काम के जरिए बदलाव लाने की कोशिश करते हैं।” शाहरुख ने भारतीय पत्रकारिता के उथलेपन की ओर इशारा किया, लेकिन यह डर का माहौल भी दर्शाता है।
फिर भी वो ज़माना नहीं आया था जब बोलने पर कोई ख़तरा महसूस किया जाता रहा हो।

2012 में, जब पेट्रोल की कीमतें बढ़ीं, तो अमिताभ बच्चन ने ट्वीट किया: “पेट्रोल 7.5 रुपये बढ़ा। पंप अटेंडेंट: कितने का डालूं? मुंबईकर: 2-4 रुपये का कार के ऊपर स्प्रे कर दे, जलाना है!
” इसी तरह 2013 में जूही चावला ने रुपये की गिरावट पर ट्वीट किया: “शुक्र है, मेरे अंडरवियर का नाम ‘डॉलर’ है। ‘रुपी’ होता तो बार-बार गिरता रहता!”

लेकिन अब, 100 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल और 86 रुपये प्रति डॉलर पर दोनों चुप हैं।
अमिताभ बच्चन समेत तमाम सितारों को उनकी लोकप्रियता ने संसद में पहुँचाया। इस सूची में शत्रुघ्न सिन्हा, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, गोविंदा, परेश रावल जैसे कई नाम हैं लेकिन ज़्यादातर सिर्फ़ अपनी पार्टी के मंच की शोभा ही बने रहे। फिर भी मौक़ा पड़ने पर बोलने से पीछे नहीं रहते थे।अमिताभ की पारी संक्षिप्त रही और बोफ़ोर्स कांड में नाम आने के बाद अपने बचपन के मित्र और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का साथ छोड़कर वे लोकसभा का अपना कार्यकाल बीच ही छोड़कर फ़िल्मी दुनिया में लौट गये।
भारत में 2014 में मोदी राज शुरू होते ही नया दौर आ गया है जिसका प्रभाव फ़िल्मी दुनिया पर साफ़ नज़र आता है। अब वही बोलता है जिसे सरकार की तारीफ़ करनी होती है।

बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुँचीं कंगना रानौत तो साफ़ कहती हैं कि आज़ादी ही 2014 में मिली है।द कश्मीर फाइल्स (2022) और द केरल स्टोरी (2023) जैसी फ़िल्मों को सरकार बढ़ावा दे रही है जबकि ज्योतिबा फुले के जीवन पर बनी फ़िल्म पर सन्नाटा खींच लिया जाता है। फुले को जिस तरह से सेंसर की मुसीबतों का सामना करना पड़ा उस पर भी फ़िल्मी सितारों की ओर से कोई विरोध देखने को नहीं मिला।

हिंदी फ़िल्मों में काम करने वाले प्रकाश राज जैसे दक्षिण भारत के सितारे ज़रूर अपवाद हैं जो खुलकर अपनी बात रखते हैं। पिछले दिनों उन्होंने X पर एक कार्टून शेयर किया, जिसमें “सिंदूर डोनेशन कैंप” को “ब्लड डोनेशन कैंप” की जगह दिखाया गया, और लिखा: “कुछ नहीं, बस नसों में चुनाव ही दौड़ रहा है।”
