पलवल के जी.जी.डी.एस.डी. कॉलेज में कार्यरत प्रिंसिपल पर संस्थागत मिली भगत के चलते शैक्षणिक धोखाधड़ी का गंभीर मामला सामने आया है। आपको अवगत करा दें कि कॉलेज के मौजूदा प्रिंसिपल डॉ. नरेश कुमार की शैक्षिक योग्यता को लेकर वह इन दिनों वो कानूनी प्रक्रिया में उलझते नजर आ रहे हैं।

डॉ.नरेश कुमार ने 4 जनवरी.2024 को कॉलेज के प्राचार्य का पदभार संभाला था। वही माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 30 अप्रैल.2025 को पारित अंतरिम आदेश में स्पष्ट रूप से निर्देश दिए गए थे कि डॉ. नरेश कुमार के विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाए। क्योंकि उन्होंने इस पद को प्राप्त करने के लिए प्लैगरिज़्म (साहित्यिक चोरी) युक्त शोध पत्रों का उपयोग किया था।

न्यायालय के इन स्पष्ट आदेशों के बावजूद, जी.जी.डी.एस.डी. कॉलेज की प्रबंधन समिति ने अब तक डॉ. नरेश कुमार के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की है वह अब तक भी प्राचार्य पद पर बने हुए हैं। गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ( पी.एच.एच.सी ) के आदेश जारी हुए एक महीने से अधिक का समय बीत चुका है। फिर भी कॉलेज प्रशासन ने संबंधित प्राधिकरणों की ना केवल न्यायिक आदेशों की अवहेलना की है बल्कि यूजीसी अधिनियम,2018 के उल्लंघन की भी अनदेखी की है जिनके अंतर्गत ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई अनिवार्य है।
सूत्रों के अनुसार डॉ. नरेश कुमार, जो मूलतः गणित विषय के शिक्षक थे,वे वर्ष 2011 में आगरा विश्वविद्यालय से संबंधित सेंट जॉन्स कॉलेज से सांख्यिकी में पीएच.डी. प्राप्त की थी। उनकी नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान उन्हें अधिकतम एपीआई अंक प्रदान किए गए - 32.5 अंक शोध प्रकाशनों के लिए तथा 25 अंक प्रशासनिक अनुभव के लिए। हालांकि, उनके द्वारा नियुक्ति हेतु प्रस्तुत किए गए कुल,10 शोध पत्रों में से 6 शोध पत्रों को एम.डी. यूनिवर्सिटी रोहतक. द्वारा गठित एक समिति ने साहित्यिक चोरी (प्लैगरिज़्म) युक्त पाया। यह समिति माननीय उच्च न्यायालय पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के निर्देशानुसार गठित की गई थी।
यह तथ्य एम.डी.यू. के कुलसचिव प्रो. गुलशन लाल तनेजा द्वारा 10. अक्टूबर.2024 को न्यायालय में प्रस्तुत हलफनामे में उल्लिखित किया गया था, जोकि डॉ. योगेश कुमार गोयल द्वारा दायर याचिका (CWP-4724 of 2024) के संदर्भ में था। एम.डी.यू. रोहतक एवं जी.जी.डी.एस.डी. कॉलेज पलवल की निष्क्रियता न केवल संस्थागत मिलीभगत की ओर इशारा करती है बल्कि पूरे उच्च शिक्षा तंत्र की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।

ऐसे समय में जब उच्च शिक्षा में ईमानदारी और उत्तरदायित्व की आवश्यकता सर्वोपरि होती है। बावजूद उसके एक अयोग्य व्यक्ति को शैक्षणिक संस्था का नेतृत्व सौंपना शिक्षा के स्तर को गिराना एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना एक खतरनाक संदेश देता है। इस मामले में तत्काल शासनिक एवं प्रशासनिक शीघ्र ही सख्त कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए ताकि यूजीसी अधिनियमों का पालन सही और समय पर हो सके ताकि शैक्षणिक नियुक्तियों की पवित्रता बनी रहे। यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि न्याय केवल किया ही न जाए, बल्कि होता हुआ भी दिखाई देना चाहिए ताकि लोगों का कानूनी प्रक्रिया से विश्वास ना हटे।

वहीं ( जी.जी.डी.एस.डी ) कॉलेज के प्रधान महेंद्र कलरा से जब इस संदर्भ में फोन पर बात की गई तो उन्होंने अपने आप को पलवल से बाहर बताते हुए कहा कि यह मामला प्रिंसिपल डॉ. नरेश कुमार और डॉ. योगेश कुमार गोयल का आपसी है।

डॉ.योगेश कुमार गोयल ने प्रिंसिपल की शिकायत एमडी यूनिवर्सिटी रोहतक में कर रखी है। कॉलेज प्रबंधन समिति का कोई लेना-देना नहीं है। हां अगर प्रिंसिपल के खिलाफ कोई ऊपर से कानूनी आदेश जारी होगा है तो हम उचित कानूनी कार्रवाई करेंगे। अब देखना यह है कि न्याय कब और कितना मिल पाता है या नहीं यह तो कानूनी प्रक्रिया एवं भविष्य पर निर्भर करता है ।।