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HomeLaw/ कानून'फादर' 'मौलाना' या 'कर्मकांडी' जो किसी को जबरन धर्मांतरित करता है, वह...

‘फादर’ ‘मौलाना’ या ‘कर्मकांडी’ जो किसी को जबरन धर्मांतरित करता है, वह यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत उत्तरदायी होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी धर्म का व्यक्ति और चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए जैसे कि फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला, आदि, वह यूपी धर्मांतरण विरोधी अधिनियम (UP ‘Anti Conversion’ Act) के तहत उत्तरदायी होगा, यदि वह किसी व्यक्ति को बलपूर्वक, गलत बयानी, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन देकर धर्मांतरित करता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल 

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मौलाना (धार्मिक पुजारी) को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर पीड़िता को जबरन इस्लाम में परिवर्तित करने और मुस्लिम व्यक्ति के साथ उसका निकाह कराने का आरोप है।

अदालत ने धारा 164 CrPc के तहत दर्ज पीड़ित-लड़की/सूचनाकर्ता के बयान को ध्यान में रखा, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया कि उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया और निकाह किया गया।

अदालत ने कहा कि आवेदक-आरोपी (मोहम्मद शाने आलम) यूपी धर्म के गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 2 (i) के तहत परिभाषित धर्म परिवर्तक होने के नाते 2021 अधिनियम के तहत उत्तरदायी होगा।

इस मामले में आवेदक, जो अधिनियम, 2021 की धारा 2 (i) में परिभाषित धर्म परिवर्तक की परिभाषा के अंतर्गत आता है ने आरोपी अमन के साथ सूचनाकर्ता का निकाह समारोह करवाया था।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

“धर्मांतरण से पहले अधिनियम 2021 की धारा 8 में दी गई आवश्यक घोषणा जिला मजिस्ट्रेट से प्राप्त नहीं की गई। अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की अवहेलना अधिनियम 2021 की धारा 5 के तहत दंडनीय है।”

बता दें कि 2021 अधिनियम की धारा 3 गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करती है। न्यायालय के समक्ष 2021 अधिनियम की धारा 3/5(1) के तहत दर्ज आरोपी-आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि उन्होंने मार्च 2024 में केवल आरोपी के साथ सूचनाकर्ता का निकाह किया था। उसे जबरन इस्लाम में परिवर्तित नहीं किया।

राज्य की ओर से पेश एजीए ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता ने धारा 164 CrPc के तहत बयान दिया कि उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। मार्च 2024 में निकाह किया गया, जो धर्म परिवर्तक आवेदक द्वारा किया गया।

इन दलीलों की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा

“जबकि भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। धर्म परिवर्तन के कई मामले सामने आए हैं। भारत का संविधान सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो भारत की सामाजिक सद्भाव और भावना को दर्शाता है। संविधान के अनुसार राज्य का कोई धर्म नहीं है। राज्य के समक्ष सभी धर्म समान हैं। किसी भी धर्म को दूसरे पर वरीयता नहीं दी जाएगी। सभी व्यक्ति अपनी पसंद के किसी भी धर्म का प्रचार, अभ्यास और प्रचार करने के लिए स्वतंत्र हैं। संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। हालांकि, हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां भोले-भाले लोगों को गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया।”

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