आनकदुन्दुभि महाबाहु वसुदेव की जन्मकथा
ब्रह्मपुराण का वर्णन करते हुए लोमहर्षण जी कहते हैं।
देवमीढुष ने असिक्नी नाम की पत्नी के गर्भ से शूर नामक पुत्र उत्पन्न किया। शूर से रानी भोज्या के गर्भ से दस पुत्र उत्पन्न हुए।
उनमें सबसे पहले महाबाहु वसुदेव उत्पन्न हुए, जिन्हें आनकदुन्दुभि भी कहते हैं। उनके जन्म लेने के बाद देवलोक में (1. अ. जा.) दुन्दुभियाँ बजी थीं और (2. अ. जा.)आन कों की गम्भीर ध्वनि हुई थी; इसलिये उनका नाम आनकदुन्दुभि पड़ गया था। उनके जन्म-काल में फूलों की वर्षा भी हुई थी। समस्त मानव-लोक में उनके समान रूपवान दूसरा कोई नहीं था। नरश्रेष्ठ वसुदेव की कान्ति चन्द्रमा के समान थी।
अधिक जानकारी
1. दुदुंभी – इसे नगाड़ा भी कहा जाता हैं। जो शहनाई के साथ शादी-ब्याह में बजाया जाता हैं।
2. आन, मृदंग – इसे पखवाज भी कहते हैं भजन कीर्तन में इसका ज्यादा इस्तेमाल होता हैं।
इस भाग में इतना ही।
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