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भारत की हवाई सुरक्षा चाक-चौबंद, एस-400 सिस्टम ने ‘दुश्मन’ के 80 फीसदी विमानों को बनाया निशाना

यह अभ्यास भारतीय वायुसेना द्वारा किया गया था, जिसमें वायुसेना ने एस-400 हवाई सुरक्षा सिस्टम की एक स्कवाड्रन तैनात की थी। इस अभ्यास का मकसद एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की क्षमताओं की जांच करना था। भारत के सुदर्शन एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। दरअसल सुदर्शन एस-400 सिस्टम ने अभ्यास के दौरान 'दुश्मन' के पैकेज के 80 फीसदी लड़ाकू विमानों को निशाना बनाया। भारत की सीमाओं की हवाई सुरक्षा के लिहाज से इसे अहम माना जा रहा है।

यह अभ्यास भारतीय वायुसेना द्वारा किया गया था, जिसमें वायुसेना ने एस-400 हवाई सुरक्षा सिस्टम की एक स्कवाड्रन तैनात की थी। इस अभ्यास का मकसद एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की क्षमताओं की जांच करना था। अभ्यास में वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने बतौर दुश्मन उड़ान भरी। अभ्यास के दौरान एस-400 ने अपने टारगेट को लॉक किया और बतौर दुश्मन उड़ान भर रहे करीब 80 फीसदी विमानों पर निशाना साधा।

भारत ने 35 हजार करोड़ रुपये में किया था एस-400 का सौदा

एस-400 को वायुसेना द्वारा तैनात कर दिया गया है और अभी एस-400 की तीन स्कवॉड्रन तैनात की जा चुकी हैं और साल 2026 तक इसकी दो और स्कवॉड्रन भारत पहुंच सकती हैं। बता दें कि एस-400 हवाई सुरक्षा सिस्टम को रूस द्वारा विकसित किया गया है। भारत ने रूस के साथ 35 हजार करोड़ रुपये में पांच एस-400 सिस्टम की डील की थी। अभी डील के तहत दो और स्कवॉड्रन भारत पहुंचनी है। भारत सरकार ने रूस से अपील की है कि बाकी बचे हुए दो स्कवॉड्रन की भी जल्द ही आपूर्ति की जाए। भारत की हवाई सीमा को चाक-चौबंद करने के लिए हाल ही में वायुसेना को एमआर-सैम और आकाश मिसाइल सिस्टम भी मिला है। साथ ही इस्राइल का जमीन से हवा में मार करने वाला स्पाइडर क्विक रिएक्शन सिस्टम भी भारत की हवाई सीमाओं को चाकचौबंद बनाएगा। एस-400, जिसे पहले S-300 PMU-3 के नाम से जाना जाता था, एक मोबाइल सिस्टम के जरिए सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है। इसे 1990 के दशक में रूस के NPO अल्माज द्वारा S-300 मिसाइलों के अपग्रेड के रूप में विकसित किया गया था। S-400 को 28 अप्रैल 2007 को सेवा के लिए मंजूरी दी गई थी और सिस्टम की पहली बटालियन ने 6 अगस्त 2007 को तैनात की गई थी। एस-400 की ऑपरेशनल रेंज 400 किमी तक है, जिसमें अलग, अगल रेंज की कई मिसाइलें शामिल हैं। इन मिसाइलों का इस्तेमाल जरूरत के हिसाब से किया जा सकता है।

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