सहस्रबाहु कार्तवीर्य अर्जुन की कथा
लोमहर्षण जी ब्रम्हपुराण में आगे वर्णन करते हैं।
कार्तवीर्य से (1.अ. जा.) अर्जुन की उत्पत्ति हुई थी जिनकी सहस्त्र भुजाएं थी। वह सात द्वीपों का राजा हुआ। उसने अकेले ही अपने तेज से संपूर्ण पृथ्वी को जीत लिया था।
उसने दस हजार वर्षों तक कठोर तपस्या कर के दत्रात्रेय को प्रसन्न किया। दत्रात्रेयजीने उसे कई वरदान दिए। पहले तो युद्धकाल में हजार भुजाएं मांगी। जब भी वह युद्ध करता उसकी हजारों भुजा प्रकट हो जाती थी।
उसने संपूर्ण पृथ्वी को जीतकर सात द्वीपों में सात सौ यज्ञ किये। उन सभी यज्ञ में एक लाख की दक्षिणा दी गयी थी। सभी में सोने के यूप गड़े थे। यज्ञ वेदियाँ सोने से बनी थी। देवता, गंधर्व महर्षि सारे अलंकृत वस्त्रों सहित विमान पर सुशोभित होते थे। इन यज्ञों का कथन नारद नामक गंधर्व ने किया था।
कार्तवीर्य अर्जुन यज्ञ, ज्ञान, तपस्या, पराक्रम और शास्त्र ज्ञान में कोई उसके मुकाबले का नहीं था। वह योगी था इसलिए ढाल, तलवार, धनुष, बाण और रथ लिए सदा सब ओर विचरता था।
वह धर्मपूर्वक प्रजा रक्षण करता था। उसके प्रभाव से किसी का धन नष्ट नहीं होता था। किसी को रोग नहीं होता था। कोई भ्रमित नहीं रहता था। वह पशु और खेतों का रक्षक भी था। अपने योगबल से खुद ही मेघ बनकर वर्षा करता था।
कार्तवीर्य अर्जुन ने (2.अ. जा.) कर्कोटक नाग के पुत्रों को जीतकर उन्हें अपनी नगरी (3.अ. जा.) महिष्तिपुरी में मनुष्यों के साथ बसाया था।
अर्जुन जब (4.अ. जा.) बारिश के मौसम में समुद्र में तैरते थे तब अपने हाथों से समुद्र की तेज लहरों को पीछे धकेल देते थे।
अपनी राजधानी को घेरती हुई नर्मदा नदी में जब वह तैरते थे, तब वह नदी भी उनके सामने डरती थी।
महासागर में तैरते वक्त जब वह अपने हाथों को पानी पर पटकते थे तब पातालनिवासी महादैत्य निश्चेष्ट होकर डर के मारे छुप जाते थे। समुद्र में झाग उत्पन्न होता था, समुद्री जीव छटपटाने लगते थे। बड़ी लहरे और भँवरे बनने लगते थे। समुद्र मंथन के समय जिस तरह समुद्र को घोला गया था वैसे ही उनके तैरने से हालात हो जाते थे। समुद्री छोटे बड़े जीव उनसे डरते थे।
कार्तवीर्यने अपने पाँच ही बाणों से लंकापति रावण को मूर्छित कर दिया था और धनुष की प्रत्यंचा से बांधकर उसे महिष्तिपुर में लाकर बंदी बना दिया था। महर्षि के याचना करने पर उसने रावण को बंधन मुक्त कर दिया था।
कार्तवीर्य अर्जुन की हजार भुजाओं से धनुष की प्रत्यंचा की आवाज प्रलयकालीन मेघ गर्जना के समान होती थी।
एक दिन प्यासे अग्निदेव ने राजा कार्तवीर्य से भिक्षा मांगी। कार्तवीर्यने भिक्षा में सातों द्वीप, नगर, गॉंव, गोष्ठ और सारा राज्य उन्हें भिक्षा में दे दिया।
उनकी भिक्षा पाकर (5.अ. जा.) अग्निदेव प्रज्वलित हो उठे और समस्त पर्वतों एवं वनों को जलाने लगे। उन्होंने (6.अ. जा.) वरुनपुत्र (7.अ. जा.) वशिष्ठ का (8.अ. जा.) शून्य आश्रम भी जला दिया।
अपने आश्रम और वन को जलते देख वशिष्ठ ऋषि ने कार्तवीर्य को शाप दिया के मेरे जैसा एक दूसरा तपस्वी तेरी हजार भुजाएँ काट देगा और तू मारा जायेगा। खुद कार्तवीर्यने ने इस तरह का वर मांगा लिया था।
बाद में शत्रुहंता, धर्मरक्षक, प्रजारक्षक कार्तवीर्य वशिष्ठ के शाप से जमदग्नि पुत्र परशुराम के हाथों मारा गया।
अधिक जानकारी
1. कार्तवीर्य अर्जुन, सहस्त्रबाहु अर्जुन
2. कर्कोटक – कर्कोटक नाग, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रसिद्ध नाग राजा है। वह कश्यप और कद्रू के पुत्रों में से एक है और निषाद देश के पास एक जंगल में रहता था। कहा जाता है कि उसने राजा नल को डंक मारा था, जिससे वह कुरूप हो गया था।
3. महिष्मति – महिष्मति, जिसे बाहुबली फिल्म में दिखाया गया है, एक प्राचीन शहर था जो वर्तमान मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित था। इसे महेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस पर प्रसिद्ध यादव हैहय शासक कार्तवीर्य अर्जुन का शासन था।
कुछ विद्वानों का मानना है कि यह वर्तमान महेश्वर है, जो मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित है।
फिल्म “बाहुबली” में दिखाए गए महिष्मति साम्राज्य की कल्पना इसी प्राचीन शहर से प्रेरित है।
4. बारिश के मौसम में समुद्र में तैरना – जलक्रीड़ा करते वक्त अर्जुन के हाथ मैंग्रोव पेड़ की तरह काम करते होंगे। यह खारे पानी में उगने वाले पेड़ हैं जो समुद्र तट और खाड़ी इलाकों में पाये जाते हैं, जबसे शहरीकरण के चलते इनकी कटाई हुई है तबसे बारिश के मौसम में समुद्र का पानी शहरों में घूंस रहा हैं। आजकल कॉन्क्रीट ब्लॉक लगाये जाते हैं जिन्हें बीच सेवर ब्लॉक या ट्रेट्रापॉड कहा जाता हैं। यह बॉक्स समुद्री लहरों को तोड़ते हैं।
5, 6. – अग्नि, वरुण – पंचतत्वों में अग्नि और जल को शत्रु माना जाता हैं।
7. वशिष्ठ – वशिष्ठ ऋषि वरुण के पुत्र माने जाते हैं, लेकिन उनका जन्म एक विशेष परिस्थिति में हुआ था। कुछ पुराणों के अनुसार, वशिष्ठ का जन्म वरुण और मित्र के वीर्य से हुआ था, जो उर्वशी को देखकर मोहित हो गए थे। यह वीर्य एक बर्तन में गिर गया, जिससे वशिष्ठ और अगस्त्य का जन्म हुआ।
वशिष्ठ मुनि के जन्मों के बारें में अनेकों ग्रंथो में अलग-अलग कहानियां पायी जाती हैं।
8. वशिष्ठ का शून्य आश्रम – वशिष्ठ का शून्य आश्रम, जिसे बशिष्ठ आश्रम भी कहा जाता है, गुवाहाटी, असम में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह आश्रम ऋषि वशिष्ठ को समर्पित है और तीन नदियों – संध्या, कांता और ललिता के संगम पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर ऋषि वशिष्ठ ने तपस्या की थी और भगवान राम ने भी यहां शिक्षा प्राप्त की थी।
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