चंद्र की उत्पत्ति और बुध का जन्म
सृष्टि निर्माण के समय ब्रम्हाजी के मन से महर्षि अत्रि का प्रादुर्भाव हुआ। अत्रि ऋषि ने तीन हजार वर्षों तक अनुत्तर नाम की दिव्य तपस्या की थी। उस तापस्या से उनका वीर्य उर्ध्वगामी होकर चन्द्रमा के रूप में प्रकट हुआ। ऋषि का वह तेज ऊर्ध्वगामी होने से उनके नेत्रों से निकलकर जल के रूप में गिरा। चंद्रमा को गिरता देख ब्रम्हाजी ने लोकहित हेतु उसे रथपर बिठा दिया।
ब्रम्हाजी सहित सभी ने उसकी स्तुति की, उस स्तुति से चंद्र ने अपना तेज सभी ओर फैला दिया। ब्रह्माजी द्वारा दिये गये रथ में बैठकर चंद्र ने संपूर्ण पृथ्वी की (1.अ. जा.) इक्कीस बार परिक्रमा की। उस परिक्रमा में जो तेज चुकर पृथ्वी पर गिरा उससे सब प्रकार के अन्न आदि उत्पन्न हुए।
चंद्र ने वर्षों तक घोर तपस्या की। उस तपस्या से संतुष्ट होकर ब्रम्हा ने चंद्र को (2.अ. जा.) बीज, औषधी, जल और ब्राम्हणों का राजा बना दिया।
राज्य पाकर चंद्र ने राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया। जिसमें खूब दक्षिणा बाँटी गयी। उस यज्ञ में सिनी, कुहू, द्युति, पुष्टि, प्रभा, वसु, कीर्ति, धृति तथा लक्ष्मी इन नौ देवियों ने चंद्रमा का सेवन किया। सभी देवताओं और ऋषियों ने उसका पूजन किया।
इतना सत्कार और ऐश्वर्य पाकर चंद्रमा की बुद्धि भ्रमित हो गयी। उनका विनयभाव नष्ट हो गया, अनीति ने उन्हें घेर लिया। वह मदमस्त हो गए।
बेकाबू हुए चंद्र ने (3.अ. जा.) बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया। देवताओं और ऋषियों के समझाने पर भी उन्होंने तारा को नहीं लौटाया। तब ब्रम्हाजी ने खुद बीच में पड़कर तारा को वापस लौटाया पर तब तारा गर्भवती हो गयी थी। यह देखकर ब्रहस्पति कुपित हो गए। तब तारा ने गर्भ को घास के एक ढेर पर त्याग दिया। उस बच्चे के तेज से देवताओं को भी लज्जित कर दिया। उस बच्चे को देख ब्रम्हाजी ने तारा से पूछा, ‘ठीक से बताओ यह बच्चा किसका हैं?’ तारा ने हाथ जोड़कर कहा, ‘यह बच्चा चंद्रमा का हैं।’ इतना सुनते ही (4.अ. जा.) चंद्रमा ने उसे गोद में उठा लिया और उसका माथा चूमकर उसे (5.अ. जा.) बुध नाम दे दिया। बुध आकाश में चंद्रमा के (6. अ. जा.) प्रतिकूल दिशा में उदित होता हैं।
अधिक जानकारी
1. इक्कीस परिक्रमा – चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 27.3 दिन में पूरी करता हैं।
2. औषधि, जल – औषधि को ऊर्जा देने के लिए चंद्रप्रकाश में रखा जाता हैं। ज्योतिष में चंद्र को जलतत्व का माना जाता हैं।
3,4,5. बृहस्पति (गुरु), चंद्र, बुध – ज्योतिष शास्त्र में चंद्र किसी भी ग्रह को अपना शत्रु नहीं मानता हैं, बुध को मित्र मानता हैं और गुरु से समभाव रखता हैं।
बुध चंद्र को अपना शत्रु मानता हैं, गुरु को सम मानता हैं पर गुरु की मीन राशि में वह नीच होता हैं।
गुरु चंद्र को मित्र मानता हैं पर बुध को शत्रु मानता हैं, चंद्र की कर्क राशि में वह उच्च का होता हैं।
पुराण कथा में गुरु, बुध, चंद्र का रिश्ता जितना उलझा हुआ हैं उतना ही ज्योतिष शास्त्र में इनका मैत्री चक्र भी उलझा हुआ हैं।
6. बुध चंद्र अपोजिट – बुध और सूर्य साथ में होते हैं इसलिए जब वें पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हैं तब चंद्र का उदय होता हैं और जब चंद्र पश्चिम दिशा में जाता हैं तब बुध पुनः पूर्व से उदित होता हैं।
इस भाग में इतना ही
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