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Part – 14 pm ke pen se bate brahma puran ki :- ऋचीक और सत्यवती की कथा

ऋचीक और सत्यवती की कथा

ऋचीक अपनी पत्नी सत्यवती से बहुत प्रसन्न थे। उन्होंने अपने लिए और  अपने ससुर राजा गाधि के लिए दो अलग-अलग (1.अ. जा.) चरु तैयार किये। उन्होंने अपनी पत्नी सत्यवती को बुलाकर कहा के, ‘इसमें से एक चरु तुम्हारे लिए हैं और एक तुम्हारी माता के लिए हैं। दोनों चरुओं को अलग रखना और जिसका चरु उसी को खाना हैं।

ऐसा करने से तुम्हारी माता को जो पुत्र होगा वह तेजस्वी और अजेय क्षत्रिय होगा और कोई भी क्षत्रिय उसे जीत नहीं पायेगा। तुम्हारे लिए जो चरु हैं उससे धीर, तपस्वी, शांति परायण श्रेष्ठ ब्राम्हण उत्पन्न होगा।’

पत्नी को चरु वाली बात समझाकर भृगुनंदन ऋचीक घने जंगल में तपस्या के लिए चले गए और वहाँ रोज तपस्या करने लगे।

उसी समय राजा गाधि अपनी पत्नी के साथ तीर्थयात्रा करते हुए ऋचीक ऋषि के आश्रम पर पहुँचे। सत्यवतीने अपने पति ऋचीक से लिए हुए दोनों चरु अपनी माता के समक्ष रख दिये। दैववश उसकी माता ने अपना चरु पुत्री को दिया और पुत्री का चरु खुद ग्रहण कर लिया।

इसके बाद सत्यवतीने समस्त क्षत्रियों का विनाश करनेवाला गर्भ धारण कर लिया। उस गर्भ से उसका शरीर बड़ा उदीप्त हो रहा था, वह भयंकर दिख रही थी। ऋचीक ने उसे देखकर योगद्वारा सबकुछ जान लिया और सत्यवती से कहा, तुम्हारी माता ने चरु बदलकर तुम्हे ठग लिया हैं। अतः तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न होनेवाला तुम्हारा पुत्र कठोर कर्मी दारुण होगा और तुम्हारी माता के गर्भ से उत्पन्न होनेवाला उसका पुत्र याने तुम्हारा भाई ब्रम्हभूत तपस्वी होगा।’

सत्यवती ने ऋचीक ऋषि से प्रार्थना की के वह वह अपनी शक्तियों से शांतिपरायण और कोमल स्वभावी पुत्र उत्पन्न करें। तब ऋचीक ऋषि ने अपने तपोबल से भृगुवंशी जमदग्नि को जन्म दिया।

सत्यवती भी पुण्यात्मा स्त्री थी इसलिए वह  (2.अ. जा.) कौशिकी नाम की महानदी बन गयी।

अधिक जानकारी

1. चरु – यज्ञ या हवन के लिए पकाये हुए अन्न को चरु या हव्यान्न कहा जाता हैं।

2. कौशिकी नदी – कौशिकी नदी, जिसे कोशी नदी भी कहा जाता है, उत्तर भारत की एक प्रमुख नदी हैं। यह नदी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बहती हैं और रामगंगा की 

सहायक नदी हैं। स्कंदपुराण के मानसखण्ड में इस नदी को कौशिकी नाम से उल्लेखित किया गया हैं। 

हिंदू ग्रंथ में कोसी नदी को कौशिकी नाम से जाना जाता है कोसी नदी के किनारे ही महर्षि विश्वामित्र को ऋषि का दर्जा मिला था। कोसी नदी पर करीब 1958-62 के बीच एक बांध बनाया गया था, जो भारत-नेपाल बॉर्डर पर स्थित हैं।

इस भाग में इतना ही।

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