Sunday, December 14, 2025
spot_img

24.1 C
Delhi
Sunday, December 14, 2025
spot_img

HomeNewsPart - 18 pm ke pen se bate brahma puran ki ययाति...

Part – 18 pm ke pen se bate brahma puran ki ययाति की कथा और सोलह कलायें

ययाति की कथा और सोलह कलायें

ययाति पर इंद्र प्रसन्न हुए और उन्हें अत्यंत प्रकाशमान रथ प्रदान किया। उस रथ में मन की वेग से दौडनेवाले घोड़े जूते हुए थे। ययाति ने उस रथ के द्वारा छह रातों में संपूर्ण पृथ्वी, देव और दानवों को भी जीत लिया। संपूर्ण पृथ्वी को जीतकर उन्होंने उसके पाँच भाग किये और उन्हें अपने पाँच पुत्रों में बाँट दिया।

एक दिन ययाति ने अपने बेटे यदु से कहा, ‘बेटे! मुझे कुछ आवश्यकता आन पड़ी हैं जिसके चलते मुझे तुम्हारी युवावस्था चाहिए। तुम मेरा बुढ़ापा ले लो बदले में मैं तुम्हारी जवानी लूंगा और इस पृथ्वी पर विचरूंगा।’

उनकी बात सुनकर पुत्र यदुने कहा, ‘महाराज! बुढ़ापे में खान पान संबंधि बहुत सारे दोष उत्पन्न हो जाते हैं अतः मैं आपका बुढ़ापा नहीं ले सकता।’

उसकी बात सुनकर यायति ने गुस्से में उसे शाप दे दिया की, ‘तेरी संतती को कभी राज्य नहीं मिलेगा।’

इसके बाद उन्होंने क्रमशः द्रुह्य, तुर्वसु और अनु से भी यहीं बात पूँछी पर उन्होंने भी अपनी जवानी देने से इंकार किया। तब यायती ने गुस्से में उनको भी शाप दिया के तुम्हारी संतती को कोई राज्य नहीं मिलेगा।

निराश गुसैल ययाति उसके बाद अपने सबसे छोटे पुत्र पुरु के पास आये उससे पूछा, ‘क्या तुम मेरा बुढापा लेकर अपनी युवावस्था मुझे दोगे?’ पुरुने उनकी बात मान ली और उनका बुढापा ले लिया।

पुरु की जवानी लेकर वह कामानाओं का अंत ढूंढते हुए (1.अ. जा.) चैत्ररथ नामक वन में गये वहाँ वह विश्वाची नामक अप्सरा के साथ रमन करने लगे। ज़ब काम भोग से तृप्त हो गए तब वापस आकर उन्होंने पुरु से अपना बुढ़ापा वापस ले लिया।

उस समय यायति ने जो (2. अ. जा.) उद्गार प्रकट किए उस पर ध्यान देने से मनुष्य सब भोगों की और से अपने मन को हटा सकता हैं।

‘भोगों की इच्छा उन्हें भोगने से कभी शान्त नहीं होती, अपितु घी से आगकी भाँति और भी बढ़ती ही जाती है।

इस पृथ्वीपर जितने भी धान, जौ, सुवर्ण, पशु तथा स्त्रियाँ हैं, वे सब एक मनुष्य के लिये भी पर्याप्त नहीं हैं- ऐसा समझकर विद्वान पुरुष मोह में नहीं पड़ता।

जब जीव मन, वाणी और क्रियाद्वारा किसी भी प्राणी के प्रति पाप-बुद्धि नहीं करता, तब वह ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है।

जब वह किसी भी प्राणी से नहीं डरता तथा उससे भी कोई प्राणी नहीं डरते, जब वह इच्छा और द्वेष से परे हो जाता है, उस समय ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है।

खोटी बुद्धिवाले पुरुषोंद्वारा जिसका त्याग होना कठिन है, जो मनुष्य के बूढ़े होनेपर भी बूढ़ी नहीं होती तथा जो प्राणनाशक रोग के समान है, उस तृष्णा का त्याग करनेवाले को ही सुख मिलता है।

बूढ़े होनेवाले मनुष्य के बाल पक जाते हैं, दाँत टूट जाते हैं; परन्तु धन और जीवन की आशा उस समय भी शिथिल नहीं होती।

संसार में जो कामजनित सुख है तथा जो दिव्य लोक का महान सुख है, वह सब मिलकर (3. अ. जा.) तृष्णा-क्षय से होनेवाले सुख की सोलहवीं (4. अ. जा.)कला के बराबर भी नहीं हो सकते।’

यों कहकर ययाति पत्नि सहित वन में चले गये। वहाँ बहुत दिनों तक उन्होंने भारी तपस्या की। तपस्या के अन्त में (5. अ. जा.)भृगुतुङ्ग नामक तीर्थ के भीतर उन्होंने सद्गति प्राप्त की। महायशस्वी ययातिने स्त्रीसहित उपवास करके देह का त्याग किया और स्वर्गलोक को प्राप्त कर लिया।

अधिक जानकारी

1. चैत्ररथ वन – चैत्ररथ वन कुबेर का एक विशाल और सुंदर बगीचा था। यह बगीचा उत्तरकुरु वर्ष में स्थित था और माना जाता था कि इसमें सभी ऋतुओं में फल लगे रहते थे। उत्तरकुरु एक वास्तविक भौगोलिक स्थान नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय साहित्य, जैसे कि पुराणों और महाकाव्यों में वर्णित एक काल्पनिक क्षेत्र है।

2. उद्गार – इन उद्गारों को संस्कृत में पढ़ा जा सकता हैं।

3. तृष्णा – “तृष्णा” का अर्थ है “लालसा” या “इच्छा”, खासकर ऐसी इच्छा जो कभी पूरी नहीं होती और व्यक्ति को बेचैन करती है। इसे “प्यास” या “कामना” भी कह सकते हैं। बौद्ध धर्म में, तृष्णा को दुःख का कारण माना गया है, और इसे तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है: भव तृष्णा (जीवित रहने की इच्छा), विभव तृष्णा (वैभव की इच्छा), और काम तृष्णा (इंद्रिय सुख की इच्छा)।

4. भृगुतुंग तीर्थ – भृगुतुंग तीर्थ, जिसे भृगुतीर्थ भी कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह स्थान महर्षि भृगु से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने यहां तपस्या की थी।

5. सोलह कलाएं – सोलह कलाएं, हिंदू धर्म में, 16 गुणों या क्षमताओं का एक समूह है जो पूर्णता और ज्ञान का प्रतीक है। इन्हें अक्सर चंद्रमा की विभिन्न कलाओं या दिव्य गुणों से जोड़ा जाता है। भगवान कृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार माना जाता है, जो पूर्णता और ज्ञान का प्रतीक है। 

ये सोलह कलाएं इस प्रकार हैं: 

1. अमृत: जीवन शक्ति, ऊर्जा

2. मानदा: मन को शांत करने वाली, विचार

3. पुष्पा: सौंदर्य, आकर्षण

4. पुष्टि: पोषण, स्वास्थ्य

5. तुष्टि: संतुष्टि, इच्छा पूर्ति

6. धृति: धैर्य, दृढ़ता

7. शाशनी: शासन, नियंत्रण

8. चंद्रिका: शांति, शीतलता

9. कांति: आभा, चमक

10. ज्योत्स्ना: प्रकाश, ज्ञान

11. श्री: समृद्धि, धन

12. प्रीति: प्रेम, स्नेह

13. अंगदा: शक्ति, स्थिरता

14. पूर्ण: पूर्णता, संपूर्णता

15. पूर्णामृत: परम आनंद

16. अनंत: अनंतता, असीम

इन कलाओं को एक व्यक्ति के भीतर ज्ञान और आध्यात्मिक विकास के विभिन्न स्तरों के रूप में भी देखा जाता है।

इस भाग में इतना ही।

हमारें वीडियो और पोस्ट में दी जानेवाली जानकारी को देखने और ड्राफ्ट को कॉपी पेस्ट करने के लिए आप हमारे यूट्यूब चैनल, ब्लॉग, फेसबुक, न्यूज वेबसाइट को विजिट कर सकते हैं।

उनमें लिखें टेक्स्ट को कॉपी पेस्ट करके अपने लिए नोट्स बना सकते हैं।

यदि फिर भी कोई समस्या आ रही हैं तो वीडियो और पोस्ट में दी गयी मेल आईडी पर मेल करें या सोशल मीडिया पर मैसेज कीजिये। हम यथासंभव सभी को जानकारी देने की कोशिश करेंगे।

ज्योतिष संबंधी मेल आईडी- pmsastrology01@gmail.com

धर्मग्रंथ संबंधी मेल आईडी- dharmgranthpremi@gmail.com

आप फोन करेंगे और हम बिजी रहेंगे तो बात नहीं हो पायेगी, इसलिए मेल आईडी पर ही अपने सवाल पूछे या सोशल मीडिया पर मैसेज करें।

हमें जब भी वक़्त मिलेगा रात-देर रात आपके सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।

हमारे कंटेंट को ढूंढने के लिए कुछ आसान कीवर्ड्स इस प्रकार हैं-

pm ke pen se brahma puran

pm ke pen se tarot card

pm ke pen se kundali jyotish

धन्यवाद!

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular