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Part – 20 pm ke pen se bate brahma puran ki:- तितिक्षु कि संतानों की जानकारी

तितिक्षु कि संतानों की जानकारी

ब्रह्मपुराण सुनाते हुए लोमहर्षनजी ने आगे महामने के दूसरे पुत्र तितिक्षु कि संतानों की जानकारी देना आरंभ किया।

तितिक्षु पूर्व दिशा के राजा थे। उनके पुत्र महापराक्रमी उषद्रथ हुए। उषद्रथ के पुत्र फेन, फेन के सुतपा तथा सुतपा के बलि हुए। राजा बलि सोने का तरकस रखते थे। वे बहुत बड़े योगी थे। उन्होंने इस भूतल पर वंश की वृद्धि करनेवाले पाँच पुत्र उत्पन्न किये। उनमें सबसे पहले अङ्ग की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात क्रमशः – वङ्ग, सुह्म, पुण्ड्र तथा कलिङ्ग उत्पन्न हुए। ये सब लोग बालेय क्षत्रिय कहलाते हैं।

बलि के कुल में बालेय ब्राह्मण भी हुए, जो वंशकी वृद्धि करनेवाले थे। ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर बलि को यह वर दिया कि ‘तुम महायोगी होओगे। एक कल्प की तुम्हारी आयु होगी। बल में तुम्हारी समानता करनेवाला कोई न होगा। तुम धर्म-तत्त्व के ज्ञाता होओगे । संग्राम में तुम्हें कोई जीत न सकेगा। धर्म में तुम्हारी प्रधानता होगी। तुम तीनों लोकों की देखभाल करोगे। सर्वत्र श्रेष्ठ माने जाओगे और चारों वर्णों को मर्यादा के भीतर स्थापित करोगे।’

भगवान ब्रह्माजी के यों कहने पर बलि को बड़ी शान्ति मिली। वे दीर्घ काल के बाद मरकर स्वर्ग को गये। उनके पाँच पुत्रों के अधिकार में जो जनपद थे, उनके नाम इस प्रकार हैं- अङ्ग, वङ्ग सुह्म, कलिङ्ग और पुण्ड्रक।

अङ्ग के पुत्र महाराज दधिवाहन हुए। दधिवाहन के पुत्र राजा दिविरथ। दिविरथ के इन्द्रतुल्य पराक्रमी और विद्वान धर्मरथ तथा धर्मरथ के पुत्र चित्ररथ हुए। राजा धर्मरथ जब (1. अ. जा.) कालञ्जर पर्वत पर यज्ञ करते थे, उस समय महात्मा इन्द्रने उनके साथ बैठकर सोमपान किया था। चित्ररथ के पुत्र दशरथ हुए, जो लोमपाद के नाम से विख्यात थे। उन्हीं की पुत्री शान्ता थी।

दशरथ के पुत्र महायशस्वी वीर चतुरङ्ग हुए, जो (2. अ. जा.) ऋष्यशृङ्ग मुनि की कृपासे उत्पन्न हुए थे। चतुरङ्ग के पुत्र का नाम पृथुलाक्ष था। पृथुलाक्ष के पुत्र महायशस्वी चम्प थे। चम्प की राजधानी (3. अ. जा.) चम्पा थी, जो पहले मालिनी के नाम से प्रसिद्ध थी।

चम्प के पुत्र हर्यश्व हुए। हर्यश्व के पुत्र वैभाण्डकि थे, जिनका वाहन इन्द्र का ऐरावत हाथी था। उन्होंने मन्त्रद्वारा उस उत्तम हाथी को पृथ्वीपर उतारा था।

हर्यश्व के पुत्र राजा भद्ररथ हुए, भद्ररथ के बृहत्कर्मा, बृहत्कर्मा के बृहद्दर्भ और बृहद्दर्भ से बृहन्मना की उत्पत्ति हुई थी। महाराज बृहन्मनाने (4. अ. जा.) जयद्रथ नामक पुत्र उत्पन्न किया।

जयद्रथ के दृढरथ, दृढरथ के विश्वविजयी जनमेजय। उनके पुत्र वैकर्ण, वैकर्ण के विकर्ण तथा विकर्ण के सौ पुत्र हुए, जो अङ्गवंश का विस्तार करनेवाले थे। ये सब अङ्गवंशी राजा बतलाये गये, जो सत्यव्रती, महात्मा, पुत्रवान तथा महारथी थे।

अधिक जानकारी

1. कालंजर पर्वत – कालंजर पर्वत, जिसे कालिंजर भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित एक पहाड़ी है, जिस पर कालिंजर का किला बना हुआ है। यह विंध्य पर्वत श्रेणी का हिस्सा है और समुद्र तल से 367 मीटर (1203 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। कालिंजर का किला भारत के सबसे मजबूत और अपराजेय किलों में से एक माना जाता है।

2. ऋष्यशृङ्ग – ऋष्यशृंग एक प्रसिद्ध ऋषि थे जिनका उल्लेख हिंदू और बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। वे विभांडक ऋषि के पुत्र थे और उनका जन्म एक सींग के साथ हुआ था, जिसके कारण उनका नाम ऋष्यशृंग (हिरण के सींग वाला) पड़ा। रामायण में, ऋष्यशृंग को राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए जाना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप भगवान राम और उनके भाइयों का जन्म हुआ। 

3. चंपा – चंपा, प्राचीन भारत में अंग महाजनपद की राजधानी थी, जो वर्तमान में बिहार राज्य के भागलपुर और मुंगेर जिलों के आसपास का क्षेत्र है।

4. जयद्रथ – यह महाभारत वाले जयद्रथ नहीं हैं। उनके पिता का नाम वृद्धक्षत्र था। वृद्धक्षत्र सिंधु देश के राजा थे।

इस भाग में इतना ही।

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