चंद्र ग्रह के उच्च-नीच, स्वराशि-मुलत्रिकोणी अंश और फल
पिछले भाग में हमने सूर्य ग्रह की जानकारी ली थी। इस भाग में हम चंद्र ग्रह के उच्च-नीच, मूलत्रिकोण-स्वराशि अंश और उनके फल क्या होते हैं समझ लेते हैं।
चंद्र वृषभ राशि के 1 से 3 अंश पर उच्च होता हैं।
उच्च और परमोच्च का चंद्र वस्त्राभूषण की प्राप्ति, महत्व, पत्नी, पुत्र विलासिता का सुख, मिष्ठान्न, पुष्प, विदेश यात्रा, स्वजन विरोध आदि फल दे सकता हैं।
वृश्चिक राशि के 1 से 3 अंश पर नीच होता हैं।
नीच राशि का चंद्र विपत्ति, कष्ट, दुःख, धन की कमी, वनवास, सजा, पैरों की पीड़ा, अन्न का अभाव, चोरी, आग, सरकारी भय; पुत्र और पत्नी को पीड़ा आदि फल दे सकता हैं।
वृषभ राशि के 4 से 30 अंश पर मुलत्रिकोणी होता हैं।
मुलत्रिकोणी चंद्र राजा से सरकार से लाभ, भूमि, पुत्र, पत्नी, आभूषण, सम्मान, मातृसुख, रतिसुख आदि शुभ फल दे सकता हैं।
कर्क राशि के 1 से 30 अंश में स्वराशि में होता हैं।
स्वक्षेत्री चंद्र राजा या सरकार से लाभ, अति वेशागमन, सरकारी सम्मान, पत्नी, पुत्र, बांधवों से सुख आदि फल दे सकता हैं।
पूर्ण बलि चंद्र
शुक्ल पक्ष की छठी तिथि से पंधरवी तिथि तक दस दिन चंद्र पूर्ण बलि रहता हैं।
मध्य बलि चंद्र
कृष्ण पक्ष की पहली तिथि से कृष्ण पक्ष की दसवीं तिथि तक मध्य बलि रहता हैं।
क्षीण चंद्र
कृष्ण पक्ष की ग्यारवीं तिथि से शुक्ल पक्ष की पांचवीं तिथि तक वह क्षीण रहता हैं।
मतभेद से कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुक्ल पक्ष की अष्टमी तक क्षीण माना जाता हैं।
कुछ ज्योतिषाचार्य सिर्फ बलि और क्षीण दो ही भाग मानते हैं। मध्यम बलि मानते नहीं हैं। पर अनुभव में कृष्ण अष्टमी का चंद्र वृषभ राशि में उच्च का पाया गया हैं। अगर वह उच्च का हैं तो क्षीण होने के अशुभ फल नहीं देगा और क्षीण होगा तो उच्च होने के शुभ फल नहीं देगा।
दूसरा यह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को कृष्ण जन्माष्टमी होती हैं और अष्टमी को गोपालकाला जिसे हम दहीहंडी या गोविंदा के नाम से जानते हैं।
ऐसी दुविधाजनक स्थिति में अपनी सूझबूझ और अनुभव काम में लाने होते हैं।
बलि चंद्र के फल
बलि चंद्र विद्याप्राप्ति, विनोदबुद्धि, सरकारी लाभ, पत्नि-पुत्र, धन-सम्मान का सुख, अच्छे कर्म आदि फल देता हैं।
क्षीण चंद्र के के फल
क्षीण चंद्र राज्य, धन, पत्नी मित्र की हानि; चंचल चित्त, पागलपन, स्वजन विरोध, दुराचार, कर्ज आदि फल देता हैं।
नोट- ध्यान रहें ग्रह की केवल एक स्थिति देखकर उसकी पूर्ण भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए। उसकी युति, अंश और उसपर पड़नेवाली दृष्टि आदि प्रभावों का भी विचार फलकथन में होना चाहिए।
इस भाग में इटना ही फिर मिलते हैं नई जानकारी के साथ।
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