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कृष्ण और विष्णु स्मरण से पाप मुक्ति

कृष्ण और विष्णु स्मरण से पाप मुक्ति

ब्रम्हपुराण में लिखा हैं कि जिस किसी को पाप करने पर पश्चाताप होता हैं उसे श्रीकृष्ण का निरंतर स्मरण करना चाहिए। कृष्ण का एक बार का स्मरण भी सर्वोत्तम प्रायश्चित होता हैं। सुबह, दोपहर, सायंकाल और मध्याह्न को हरिनाम से तत्काल पापमुक्ति मिल जाती हैं। विष्णु भजन और कीर्तन से सारे क्लेश मिटकर मुक्ति मिल जाती हैं। दिन रात विष्णु स्मरण करनेवाला सारे पाप का नाश होने के कारण नरक में नहीं जाता।

ब्रम्हपुराण में आगे लिखा हैं कि एक ही वस्तु सुख और दुःख दोनों का कारण बनती हैं। कोई वस्तु जो पहले सुख का कारण बनी हैं वहीं बाद में दुखों का कारण भी बनती हैं।

चलिये जरा इसपर और सोचते हैं।

किसी के धन दौलत ना हो तो उसके मिलने पर जीवन में खुशी आती हैं, वहीं धन दौलत जब लूटी जाती हैं या वह बर्बाद होती हैं तब दुख होता हैं।

शादीब्याह से खुशी मिलती हैं रिश्ते जुड़ते हैं तब सबको बड़ा अच्छा लगता हैं, पर वह जब टूट जाती हैं तब जो दुख होता हैं उसकी कसक जिंदगी भर तकलीफ देती हैं।

बच्चे ना होने पर जब वें होते हैं तब सबसे ज्यादा खुशी होती हैं, पर पैदा हुए बच्चे गलत राह पर चलकर अपने लिए या समाज के लिए खतरा बनते हैं तब उनके पैदा होने पर अफसोस होता हैं।

ऐसी ही कितनी सारी बातों का उदाहरण हम इस बात को अधोरेखित करने के लिए ले सकते हैं।

अब पापमुक्ति और ईश्वर स्मरण को समझते हैं।

क्या सच में सिर्फ ईश्वर स्मरण क़रने से पापमुक्ति मिल जाती हैं। हम इस बात की ओर ध्यान कम देते हैं कि उसमें प्रायश्चित के पश्चात पापमुक्ति कहा गया हैं।

कोई इंसान जीवनभर सजा काटकर भी सुधर नहीं पाता पर कोई सिर्फ किसी की माँफी माँगने से सजामुक्त और पापमुक्त हो जाता हैं।

कोई जीवनभर काल कोठरी में रहकर भी उसे अपनी गलतियों का अहसास नहीं होता हैं, उल्टा वह और भी ज्यादा गलतियाँ करता रहता हैं और बड़े से बड़े क्रूर कर्मों को करता रहता हैं। आखिर में जब उसे फाँसी का फंदा अपने गले पड़ा दिखता हैं तब वह रोने लगता हैं।

कोई जिसे सच में पश्चाताप हुआ हैं वह पहले दिन ही फाँसी पर चढ़ रहा हो तब भी हँसमुख रहता हैं। खुद अपने हाथ से फंदा गले में डलवा लेता हैं और शांत मन से दुनिया को अलविदा कह देता हैं।

शास्त्र हमें क्या सिखाना चाहते हैं यह हमें समझना चाहिए। हम एक के बाद एक पाप करते रहें और ईश्वर भक्त बने रहे तो कुछ नहीं होगा। हम किसी भी धर्म के हो, किसी भी मान्यताओं को माननेवाले हो। हर धर्म पाप के बाद प्रायश्चित करने की सलाह देता हैं, पश्चाताप से बढ़कर कोई सजा नहीं हो सकती।

ईश्वर हमेशा यही चाहेगा के हम बुरे कर्मो को छोड़कर अच्छे कर्म करते रहें। शास्त्र हमें खुद में सुधार लाने की सलाह देते हैं, जिसकी तरफ हमारा ध्यान कम जाता हैं या उसे हम अनदेखा कर देते हैं।

इस भाग में इतना ही।

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