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पावर ऑफ अटॉर्नी धारक, जो ट्रस्ट का प्रबंधक और ट्रस्टी भी है, ट्रस्ट की ओर से साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ट्रस्ट का पावर ऑफ अटॉर्नी धारक जो ट्रस्ट का प्रबंधक भी है, वह ट्रस्टी की हैसियत रखता है। इसलिए वह ट्रस्ट की ओर से गवाही देने के साथ-साथ साक्ष्य भी प्रस्तुत कर सकता है।

जस्टिस रेखा बोराणा की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता ट्रस्ट- रामनिवास धाम ट्रस्ट द्वारा अपने पावर ऑफ अटॉर्नी धारक पारसमल पीपाड़ा के माध्यम से भीलवाड़ा के किराया न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन को केवल आंशिक रूप से स्वीकार किया गया। प्रतिवादी ने अपने आवेदन के माध्यम से प्रार्थना की थी कि याचिकाकर्ता ट्रस्ट के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य को पढ़ा और स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

किराया न्यायाधिकरण ने पाया कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक पीपाड़ा ट्रस्ट की ओर से गवाही नहीं दे सकता था। इसके अलावा उसके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को हलफनामे के माध्यम से भी प्रदर्शित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह नहीं माना जा सकता था कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक को उन दस्तावेजों की विषय-वस्तु के बारे में व्यक्तिगत जानकारी थी। न्यायाधिकरण ने माना कि दस्तावेज केवल ट्रस्ट के ट्रस्टियों द्वारा ही प्रदर्शित किए जा सकते थे, पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा नहीं। इसलिए पीपाड़ा द्वारा हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड पर रखे गए दस्तावेजों को डी-मार्क करने का निर्देश दिया गया। हालांकि, न्यायाधिकरण ने पीपाड़ा को स्वतंत्र गवाह के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दी। इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई।

हाईकोर्ट ने माना कि यह स्वीकृत तथ्य है कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक ट्रस्ट का प्रबंधक भी था। न्यायालय ने राजस्थान सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम, 1959 के तहत ट्रस्टी और कार्यकारी ट्रस्टी की परिभाषा का उल्लेख किया और पाया कि परिभाषाएँ इस तथ्य के बारे में स्पष्ट थीं कि ट्रस्ट का प्रबंधक ट्रस्टी की क्षमता रखता है। बदले में पावर ऑफ अटॉर्नी धारक जो ट्रस्ट का प्रबंधक भी था, ट्रस्टी की हैसियत भी रखता था

“उपर्युक्त परिभाषाओं का एकमात्र अवलोकन यह स्पष्ट करता है कि ट्रस्ट का प्रबंधक ट्रस्टी की हैसियत रखता है। इसलिए याचिकाकर्ता-ट्रस्ट का पावर ऑफ अटॉर्नी धारक जो ट्रस्ट का प्रबंधक था, निश्चित रूप से “ट्रस्टी” की परिभाषा के अंतर्गत आता है। इसलिए वह याचिकाकर्ता-ट्रस्ट की ओर से साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता था। उसे ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी। उपरोक्त टिप्पणियों के मद्देनजर, जब यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पारसमल पिपाड़ा याचिकाकर्ता-ट्रस्ट की ओर से आवश्यक परिणाम के रूप में गवाही दे सकता था तो उसके हलफनामे के माध्यम से प्रदर्शित किए जाने वाले दस्तावेज निश्चित रूप से प्रदर्शित किए जा सकते थे।” (राजस्थान हाईकोर्ट)

न्यायाधिकरण का आदेश खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि किराया न्यायाधिकरण मामले में आगे की कार्यवाही करने के लिए बाध्य होगा।

केस टाइटल- रामनिवास धाम ट्रस्ट बनाम निर्मला चौधरी और अन्य।

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